यूपी में सपा-कांग्रेस की बढ़ती दूरी, इमरान मसूद के बयान से बसपा को फायदे की उम्मीद, सियासी सरगर्मी तेज

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उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरी ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए नए अवसर खोल दिए हैं। सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद के बयान ने इस चर्चा को और हवा दी है, जिसमें उन्होंने सपा के बजाय बसपा के साथ गठबंधन को कांग्रेस के लिए अधिक फायदेमंद बताया। इस बयान ने सियासी हलकों में सरगर्मी बढ़ा दी है, और बसपा, सपा, व कांग्रेस के नेता इसके निहितार्थ तलाशने में जुट गए हैं।

इमरान मसूद का बयान और सियासी हलचल

22 मई 2025 को इमरान मसूद ने कहा कि कांग्रेस को 2027 के विधानसभा चुनाव में “बैसाखी” की जरूरत नहीं है, और सपा के साथ 80-17 सीटों का पुराना फॉर्मूला अब नहीं चलेगा। उन्होंने सुझाव दिया कि बसपा के साथ गठबंधन, खासकर दलित-मुस्लिम गठजोड़ को देखते हुए, कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है। मसूद ने मायावती को सलाह दी कि यदि बसपा इस बार गठबंधन पर विचार नहीं करती, तो उसकी मूल विचारधारा खतरे में पड़ सकती है। उनके इस बयान ने सपा-कांग्रेस गठबंधन में तनाव को उजागर किया और बसपा को पश्चिमी यूपी में अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका दिया, जहां मुस्लिम और दलित वोटर निर्णायक हैं।

सपा-कांग्रेस के बीच तनाव

लोकसभा चुनाव 2024 में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने 43 सीटें जीतीं, जिनमें सपा को 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं। हालांकि, इसके बाद दोनों दलों के नेताओं की बयानबाजी ने गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठाए। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के खिलाफ मसूद की टिप्पणी कि उन्हें मुलायम सिंह यादव की तरह “बड़ा दिल” दिखाना चाहिए, ने तनाव को और बढ़ाया। सपा के कुछ नेताओं का मानना है कि कांग्रेस अपनी जीत का श्रेय गठबंधन को देने के बजाय खुद को मजबूत करने में लगी है, जिससे रिश्तों में खटास आई है।

बसपा के लिए अवसर

जानकारों का मानना है कि सपा-कांग्रेस की दूरी बसपा के लिए फायदेमंद हो सकती है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन को हमेशा नुकसानदेह बताया है, और 2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ने का फैसला किया था। हालांकि, इमरान मसूद जैसे नेताओं के बयान और पश्चिमी यूपी में उनकी पकड़ बसपा को दलित-मुस्लिम गठजोड़ के जरिए फायदा पहुंचा सकती है। बसपा ने हाल ही में संगठन को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे पूर्व सांसद गिरीश चंद्र की वापसी और आकाश आनंद को चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाना। मायावती ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए छह महीने का सदस्यता अभियान शुरू करने का ऐलान किया है, जिसमें युवा नेताओं को प्राथमिकता दी जा रही है।

बसपा की रणनीति और चुनौतियां

मायावती ने सपा और कांग्रेस को “जातिवादी” बताते हुए कहा है कि ये दल दलितों और बहुजनों के सच्चे हितैषी नहीं हैं। उन्होंने 1993 और 2019 के सपा गठबंधन को निभाने की कोशिश की, लेकिन “बहुजन समाज” का हित और आत्म-सम्मान सर्वोपरि बताया। बसपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं जीती, जिसे अखिलेश यादव ने उनकी कमजोरी बताया। फिर भी, बसपा पंचायत चुनावों से दूरी बनाकर 2027 के लिए संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है। हालांकि, मायावती की कांग्रेस के प्रति हमलावर रुख और गठबंधन से परहेज की नीति बसपा के लिए चुनौती बन सकती है।

इमरान मसूद का सियासी सफर

इमरान मसूद पश्चिमी यूपी में एक प्रभावशाली मुस्लिम नेता हैं। वे 2022 में कांग्रेस से सपा में गए, फिर बसपा में शामिल हुए, लेकिन 2023 में अनुशासनहीनता के आरोप में निष्कासित कर दिए गए। इसके बाद वे कांग्रेस में लौटे और 2024 में सहारनपुर से सांसद बने। मसूद की सियासी चालबाजियां और क्षेत्र में उनकी पकड़ उन्हें महत्वपूर्ण बनाती हैं, लेकिन उनके बयानों ने सपा-कांग्रेस गठबंधन में दरार डाल दी है।

Mohd Taqveem

Siddiqui

is a writer covering Politics, Sports, Entertainment. He loves crafting engaging stories that inform and inspire readers.